शादी के कितने दिन बाद तलाक ले सकता है कपल | General Knowledge : जब शादी के बाद किसी जोड़े के रिश्ते में समस्या आ जाती है और अलगाव ही एकमात्र समाधान बचता है तो लोग तलाक का सहारा लेते हैं ! कई मामलों में जोड़े लंबे समय तक साथ रहते हैं और फिर अलग होना चाहते हैं। वहीं कई मामलों में शादी के कुछ समय बाद ही कपल्स के अलग होने की मांग आने लगती है। कई जोड़े 2-3 महीने भी साथ नहीं रह पाते हैं, लेकिन शादी के बाद तलाक की एक समय सीमा होती है, जिसके बाद ही कोई व्यक्ति तलाक ले सकता है।
शादी के कितने दिन बाद तलाक ले सकता है कपल | General Knowledge
ऐसे में सवाल यह है कि वह समय सीमा क्या है और कितने समय के बाद वे कानूनी तलाक के जरिए अलग हो सकते हैं। दरअसल, कई लोग कहते हैं कि यह सीमा एक साल है तो हम जानते हैं कि आखिर शादी के बाद एक साल तक तलाक नहीं लिया जा सकता है। तो आइए समझते हैं कि भारत में तलाक को लेकर क्या नियम है?
तलाक कब लिया जा सकता है?
दरअसल, तलाक में दो स्थितियाँ होती हैं। तलाक वह होता है जिसमें पति-पत्नी दोनों तलाक के लिए सहमत होते हैं और साथ नहीं रहना चाहते। इसके अलावा एक स्थिति ऐसी भी होती है जिसमें पति-पत्नी में से कोई एक तलाक की याचिका दायर करता है। ऐसे में दोनों ही स्थितियों में तलाक के अलग-अलग नियम हैं।
दिल्ली हाई कोर्ट के वकील प्रेम जोशी का कहना है कि अगर विवादित तलाक दाखिल किया गया है तो इसे शादी के एक दिन बाद भी दाखिल किया जा सकता है. इस स्थिति में, कोई समय सीमा नहीं है और जोड़े में से कोई भी एक व्यक्ति जब चाहे तब फाइल कर सकता है।
शादी के कितने दिन बाद तलाक ले सकता है कपल| GK In Hindi General Knowledge
वहीं, अगर आपसी तलाक दाखिल किया जाता है तो इसके लिए एक समय सीमा होती है। यानी जब पति-पत्नी दोनों आपसी सहमति से अलग होना चाहते हैं तो इस स्थिति में शादी एक साल के लिए होनी चाहिए। एक वर्ष तक साथ रहने के बाद आपसी तलाक दायर किया जा सकता है। इसके बाद भी कोर्ट सुलह के लिए 6 महीने का वक्त देता है. 6 महीने पूरे होने पर धारा 13बी के तहत दोबारा समय दिया जाता है।
अदालत करती है फैसला | General Knowledge
GK In Hindi General Knowledge : हालाँकि, इस दौरान कुछ परिस्थितियों में बिना समय दिए भी तलाक दिया जा सकता है। यह अदालत पर निर्भर करता है और अदालत जोड़े की परिस्थितियों को देखने के बाद यह तय कर सकती है कि जोड़े को तलाक की मंजूरी कब देनी है। ऐसे में कहा जा सकता है कि कुछ स्थितियां अलग हैं और कोर्ट उन परिस्थितियों के आधार पर फैसला ले सकता है।
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